मौजूदा समय में घर खरीदना एक बड़ी चुनौती है। ये सौदा इसलिए चुनौती बन जाता है क्योंकि रियल एस्टेट माकेट पूरी तरह से पेशेवर और पारदर्शी नहीं है। कीमतों से लेकर जरूरी कागजातों तक में हेराफेरी की आशंका बनी रहती है। ऐसे में कोई भी घर खरीदने से पहले थोड़ा सा सा होमवर्क बडी मुश्किल से बचा सकता है।
एरिया की जांच पड़ताल करेंलोकेशन तय करने का पैरामीटर हमेशा अपनी रोजमर्रे की जरूरत को बनाएं। मसलन आपका ऑफिस,बच्चो का स्कूल,नजदीक का हॉस्पीटल और बाजार। फिर अपने तय बजट के हिसाब से प्रोजेक्ट का चुनाव करें।
कनेक्टिविटी पर गौर करेंयह जरूर देखें कि आपके ऑफिस के साथ-साथ मुख्य शहर, बाजार, हॉस्पीटल और स्कूल जाने के लिए वहां से मेट्रो,बस या ऑटो जैसी सुविधाएं मौजूद हैं या नहीं। अक्सर बिल्डर या डीलर भविष्य की कनेक्टिविटी को बढ चढ कर बताते हैं। ऐसे में आप भावी योजनाओं की जानकारी एरिया की अथॉरिटी से लें।
रिटर्न ध्यान में रखें
हो सकता है कल आप खरीदे जाने वाले फ़्लैट को किराए पर दें या फिर बेचने की सोचें। ऐसे में संभावित रिटर्न का आकलन जरूर करें। मसलन दो से पांच साल बाद खरीदे जाने वाले घर को बेचने पर कितना दाम मिलेगा। क्या आने वाले दिनों में उसका बेहतर किराया मिलेगा? फ़्लैट खरीदने से पहले इन दोनों बातों का जरूर ध्यान रखें। यह आसपास तैयार होने वाले कमिर्शयल प्रॉपटी पर निर्भर करता है।
आसपास कमिर्शयल प्रॉपटी का भी जायजा जरूर लें
भविष्य में अगर वहां काम करने वाले ज्यादा आएंगे तो किराए की मांग भी बढ़ेगी। आपके फ़्लैट की रिसेल कीमत भी इसी आधार पर तय होगी। इसलिए आसपास के संभावित विकास पर भी नज़र रखें।
डीलरों से बात करके औसत कीमत निकालेंएक डीलर से बात करेंगे तो हो सकता है पहली बार ज्यादा कीमत सुनने को मिले। डीलर मानकर चलते हैं कि पहली बार पूछने वाला व्यक्ति गम्भीर खरीदार नहीं है। उससे संपर्क में रहें। लेकिन आसपास के कम से कम 5 डीलर से उस एरिया में प्रॉपटी की कीमत पता करें। सबसे दो या तीन बार बात करें फिर औसत कीमत लगाकर विश्वसनीय लगने वाले डीलर से सौदा करें।
लोन लेते समय सावधानीडीलर या बिल्डर आपको हमेशा किसी खास बैंक से लोन लेने का दबाव बनाते हैं। लेकिन आप खुद जबतक बैंक
की विश्वसनीयता पर भरोसा न हो बैंक से लोन मत लीजिए। जिस प्रोजेक्ट को केवल एक बैंक लोन कर रहा हो वहां घर नहीं खरीदें। क्योंकि ज्यादा बैंक प्रोजेक्ट की विश्वसनीयता की गारंटी होते हैं। बिल्डर के प्रोजेक्ट में थोड़ा भी खामी होती है तो बैंक उसके प्रोजेक्ट को लोन नहीं देते। वैसे डीलर या बिल्डर आपको एक सीमा से ज्यादा भरोसा दिलाने की कोशिश करेंगे लिहाजा भावुकता या दबाव में निर्णय न लें।
कौन सा लोन लें, कंस्ट्रक्शन लिंक या टाइम लिंकहमेशा बेहतर होगा कि आप कंस्ट्रक्श्न लिंक लोन लें। जिस तेजी से प्रोजेक्ट बनेगा उसी हिसाब से आपके लोन का पैसा बिल्डर को मिलेगा। बिल्डरों को पैसे की कमी होती है ऐसे में वे डाउन पेमेंट पर ज्यादा छूट देने की बात करते हैं। लेकिन डाउनपेमेंट केवल 80 परसेंट कंस्ट्रक्शन हो चुके प्रोजेक्ट पर ही करें। अगर प्रोजेक्ट अभी लांच हुआ है या थोडा काम हुआ तो कंस्ट्रक्शन लींक पेमेंट ही करें।
डीलर से घर लें या बिल्डर से सीधे खरीदेंज्यादातर डेवलपर फ़्लैट की बिक्री डीलर के जरिए करता है। आजकल प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले ही डीलर उसे अण्डरराइट करते हैं। फिर सबब्रोकर यानी दूसरी कटेग्री वाला ब्रोकर या डीलर कमीशन के हिसाब से कीमतों में बदलाव करके आपको लुभाने की कोशिश करता है।
कई बार ज्यादा कंपटीशन की वजह से बेहतर डील भी मिल जाती है। डीलर आपको सोल्डआउट होने या कम फ़्लैट बचे हैं, जैसी बातों से जल्दी फैसला लेने का दबाव डालता है। लेकिन आपको ऐसी बातों में नहीं आना चाहिए और कीमत पर बार्गेन करना चाहिए। फैसले को अगले दिन के लिए टाल सकते हैं। 90 परसेंट मामलों में डीलर दोबारा फोन करके ग्राहक को बुलाता है।
कानूनी दस्तावेज पर नज़र रखेंफ़्लैट लेने से पहले यह जरूर देखें कि प्रोजेक्ट को सम्बंधित अथॉरिटी से जरूरी मंजूरी मिली हो। कई बार आधे अधूरे मंजूरी के साथ बिल्डर प्रोजेक्ट लांच करते हैं। ऐसे प्रोजेक्ट में बुकिंग कराने से बचें। इसके अलावा
खरीदी जाने वाली प्रॉपटी के कागजात को अपने जानने वाले किसी वकील से चेक करा लें।
दीपू राय,
पोपर्टी विशेषज्ञ
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एरिया की जांच पड़ताल करेंलोकेशन तय करने का पैरामीटर हमेशा अपनी रोजमर्रे की जरूरत को बनाएं। मसलन आपका ऑफिस,बच्चो का स्कूल,नजदीक का हॉस्पीटल और बाजार। फिर अपने तय बजट के हिसाब से प्रोजेक्ट का चुनाव करें।
कनेक्टिविटी पर गौर करेंयह जरूर देखें कि आपके ऑफिस के साथ-साथ मुख्य शहर, बाजार, हॉस्पीटल और स्कूल जाने के लिए वहां से मेट्रो,बस या ऑटो जैसी सुविधाएं मौजूद हैं या नहीं। अक्सर बिल्डर या डीलर भविष्य की कनेक्टिविटी को बढ चढ कर बताते हैं। ऐसे में आप भावी योजनाओं की जानकारी एरिया की अथॉरिटी से लें।
रिटर्न ध्यान में रखें
हो सकता है कल आप खरीदे जाने वाले फ़्लैट को किराए पर दें या फिर बेचने की सोचें। ऐसे में संभावित रिटर्न का आकलन जरूर करें। मसलन दो से पांच साल बाद खरीदे जाने वाले घर को बेचने पर कितना दाम मिलेगा। क्या आने वाले दिनों में उसका बेहतर किराया मिलेगा? फ़्लैट खरीदने से पहले इन दोनों बातों का जरूर ध्यान रखें। यह आसपास तैयार होने वाले कमिर्शयल प्रॉपटी पर निर्भर करता है।
आसपास कमिर्शयल प्रॉपटी का भी जायजा जरूर लें
भविष्य में अगर वहां काम करने वाले ज्यादा आएंगे तो किराए की मांग भी बढ़ेगी। आपके फ़्लैट की रिसेल कीमत भी इसी आधार पर तय होगी। इसलिए आसपास के संभावित विकास पर भी नज़र रखें।
डीलरों से बात करके औसत कीमत निकालेंएक डीलर से बात करेंगे तो हो सकता है पहली बार ज्यादा कीमत सुनने को मिले। डीलर मानकर चलते हैं कि पहली बार पूछने वाला व्यक्ति गम्भीर खरीदार नहीं है। उससे संपर्क में रहें। लेकिन आसपास के कम से कम 5 डीलर से उस एरिया में प्रॉपटी की कीमत पता करें। सबसे दो या तीन बार बात करें फिर औसत कीमत लगाकर विश्वसनीय लगने वाले डीलर से सौदा करें।
लोन लेते समय सावधानीडीलर या बिल्डर आपको हमेशा किसी खास बैंक से लोन लेने का दबाव बनाते हैं। लेकिन आप खुद जबतक बैंक
की विश्वसनीयता पर भरोसा न हो बैंक से लोन मत लीजिए। जिस प्रोजेक्ट को केवल एक बैंक लोन कर रहा हो वहां घर नहीं खरीदें। क्योंकि ज्यादा बैंक प्रोजेक्ट की विश्वसनीयता की गारंटी होते हैं। बिल्डर के प्रोजेक्ट में थोड़ा भी खामी होती है तो बैंक उसके प्रोजेक्ट को लोन नहीं देते। वैसे डीलर या बिल्डर आपको एक सीमा से ज्यादा भरोसा दिलाने की कोशिश करेंगे लिहाजा भावुकता या दबाव में निर्णय न लें।
कौन सा लोन लें, कंस्ट्रक्शन लिंक या टाइम लिंकहमेशा बेहतर होगा कि आप कंस्ट्रक्श्न लिंक लोन लें। जिस तेजी से प्रोजेक्ट बनेगा उसी हिसाब से आपके लोन का पैसा बिल्डर को मिलेगा। बिल्डरों को पैसे की कमी होती है ऐसे में वे डाउन पेमेंट पर ज्यादा छूट देने की बात करते हैं। लेकिन डाउनपेमेंट केवल 80 परसेंट कंस्ट्रक्शन हो चुके प्रोजेक्ट पर ही करें। अगर प्रोजेक्ट अभी लांच हुआ है या थोडा काम हुआ तो कंस्ट्रक्शन लींक पेमेंट ही करें।
डीलर से घर लें या बिल्डर से सीधे खरीदेंज्यादातर डेवलपर फ़्लैट की बिक्री डीलर के जरिए करता है। आजकल प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले ही डीलर उसे अण्डरराइट करते हैं। फिर सबब्रोकर यानी दूसरी कटेग्री वाला ब्रोकर या डीलर कमीशन के हिसाब से कीमतों में बदलाव करके आपको लुभाने की कोशिश करता है।
कई बार ज्यादा कंपटीशन की वजह से बेहतर डील भी मिल जाती है। डीलर आपको सोल्डआउट होने या कम फ़्लैट बचे हैं, जैसी बातों से जल्दी फैसला लेने का दबाव डालता है। लेकिन आपको ऐसी बातों में नहीं आना चाहिए और कीमत पर बार्गेन करना चाहिए। फैसले को अगले दिन के लिए टाल सकते हैं। 90 परसेंट मामलों में डीलर दोबारा फोन करके ग्राहक को बुलाता है।
कानूनी दस्तावेज पर नज़र रखेंफ़्लैट लेने से पहले यह जरूर देखें कि प्रोजेक्ट को सम्बंधित अथॉरिटी से जरूरी मंजूरी मिली हो। कई बार आधे अधूरे मंजूरी के साथ बिल्डर प्रोजेक्ट लांच करते हैं। ऐसे प्रोजेक्ट में बुकिंग कराने से बचें। इसके अलावा
खरीदी जाने वाली प्रॉपटी के कागजात को अपने जानने वाले किसी वकील से चेक करा लें।
दीपू राय,
पोपर्टी विशेषज्ञ
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